जैसा की आप सब जानते होंगे इस वक़्त UPA की अध्यक्ष सोनिया गाँधी हैं. इससे पहले उनका बेटा था और उससे पहले वह खुद ही थी. पिछले कुछ महीनों से गांधी हटाओ कांग्रेस बचाओ अभियान चलाया जा रहा हैं, इस अभियान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के समेत कांग्रेस गठबंधन वाली पार्टियों के नेता भी शामिल हैं.
यह खुलकर कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर सवाल खड़े कर रहें हैं और अब मीडिया में खबर चल रही हैं की एनसीपी प्रमुख शरद पवार अगले साल UPA के अध्यक्ष पद रेस में सबसे आगे चल रहें हैं. एक जमाना था जब UPA अध्यक्ष पद के चुनावों में मात्र एक ही कैंडिडेट खड़ा होता था, नेताओं के पास उस कैंडिडेट को वोट करने के इलावा कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होता था.
ऐसे में चुनावों में लगातार मिली हार, देशविरोधी बयान, राज्यों में बानी बनाई सरकारों का टूटना इस तरफ इशारा करता है की UPA अध्यक्ष अपनी जिम्मेदारियों को सही से नहीं निभा पा रहा. 2014 के बाद से ही कांग्रेस हर एक मुद्दे को भुनाने में नाकाम रही हैं, चीन के मुद्दे पर भी जब राहुल गांधी ने भारतीय सेना का मनोबल तोड़ने की कोशिश की थी तो सबसे पहला विरोध एनसीपी नेता शरद पवार ने ही किया था.
दरअसल आज की राजनीती में राष्ट्रवादी पार्टी की मांग हैं, लेकिन कांग्रेस नेता लगातार सेकुलरिज्म को बढ़ावा और राष्ट्रवाद की आलोचना कर रहें हैं. ऐसे में बीच बीच में अपनी ही सेना पर उठाये जाने वाले सवाल कांग्रेस की स्थिति को और ज्यादा प्रभावित कर रहें हैं.
जब कांग्रेस नेता ऐसा बयान देता है तो नुक्सान अकेली कांग्रेस का नहीं बल्कि उसकी गठबंधन वाली पार्टी का भी होता हैं. उदाहरण के लिए आप उतर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, कर्णाटक में JDU और अब बिहार में RJD का हाल देख ही सकते हैं. इसीलिए अब कांग्रेस के गठबंधन वाली पार्टियां UPA का अध्यक्ष को बिना गांधी सरनेम के देखना चाहती हैं. लेकिन संजय निरुपम का कहना है की, अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस पार्टी हाशिये पर चली जाएगी.