एक जमाना था जब शरद पवार कांग्रेस का ही हिस्सा हुआ करते थे. तब वह कांग्रेस का अध्यक्ष बनकर प्रधानमंत्री बनने की मंशा रखते थे जो किसी से छुपी हुई नहीं थी. जब उन्हें लगा की उनका यह सपना साकार नहीं हो सकता वह राजनितिक कारणों का हवाला देते हुए अपनी अलग पार्टी बनाकर महाराष्ट्र में सिमिट गए.
लेकिन राजनीती ऐसी चीज़ हैं जहाँ सम्भावना कभी ख़त्म नहीं होती. शायद यही कारण हैं की कांग्रेस अध्यक्ष न सही लेकिन UPA अध्यक्ष बनकर वह प्रधानमंत्री बनने का ख़वाब दुबारा देख सकते हैं. कांग्रेस नेता और UPA में गठबंधन वाली बहुत सारी पार्टियां पहले ही गांधी परिवार की अध्यक्षता पर सवाल खड़े करती आ रही हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तो अब खुलकर गांधी परिवार की अध्यक्षता पर सवाल खड़े करते हैं. उधर कांग्रेस है की, अपने अध्यक्ष पद की कुर्सी पर कभी राहुल को बैठा देती है तो कभी सोनिया गांधी को. अब शरद पवार UPA अध्यक्ष की रेस में सबसे आगे चल रहें हैं. गांधी परिवार के वफादार नेता इसका विरोध अभी से करना शुरू कर चुके हैं.
इसकी शुरुआत अभी से हो चुकी हैं, देश भर में चल रहे किसान आंदोलन के बीच संयुक्त विपक्षी नेता के रूप में शरद पवार को आगे किया गया हैं. कांग्रेस पार्टी ने UPA के अन्य पार्टी के नेताओं को भी समय-समय पर आगे किया हैं, लेकिन उनमे से कोई भी शरद पवार जितना राजनीती में चतुर इंसान नहीं मिला.
शिवसेना और एनसीपी महाराष्ट्र में कांटे की टक्कर रखने वाले घोर विरोधी पार्टियों में से एक थे. लेकिन समय आने पर शरद पवार ने उसे भी सेक्युलर की घुटी पिलाते हुए मुख्यमंत्री पद का लालच देकर NDA से अलग कर दिया. ऐसे में अगर किसान आंदोलन के जरिये विपक्ष मोदी सरकार की छवि देश और दुनिया में खराब करने की कोशिश में कामयाब होती हैं तो यह 2021 में होने वाले कई विधानसभा चुनावों में विपक्ष के लिए फायदेमंद साबित होगी.