मजहबी कट्टरपंथ के खिलाफ अपने खुले विचारों को प्रगट करने वाली लेखिका तस्लीमा नसरीन अक्सर ऐसे बयानों से सुर्ख़ियों में रहती हैं, जिन बयानों के साथ ही इस्लाम खतरे में आ जाता हो. यह भारत में एक शरणार्थी के तौर पर रहती हैं और भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में मजूद कट्टरपंथियों के निशाने पर रहती हैं.
अपने ताज़ा ट्वीट में तस्लीमा नसरीन ने बांग्लादेश में मजूद मदरसों के हालातों के बारें में लिखते हुए कहा की, “बांग्लादेश में रोजाना मस्जिद-मदरसे में बलात्कार हो रहे हैं. अल्लाह के नाम पर बलात्कार हो रहे हैं. मदरसे के बलात्कारी-शिक्षक, बलात्कारी-मस्जिद के इमामों का मानना है कि अगर वो पाँच वक्त की नमाज अदा करेंगे तो उनके गुनाह आजाद होंगे, क्योंकि अल्लाह माफ कर रहा है.”
अपने ऐसे ही कट्टरपंथ के खिलाफ बयानों के चलते तस्लीमा नसरीन के खिलाफ बांग्लादश, पाकिस्तान और भारत में जान से मारने के फतवे भी जारी किये जा चुके हैं. बांग्लादेश से देश निकाला मिलने के बाद उन्होंने भारत में शरण ली लेकिन उन्होंने अपनी आवाज़ को कभी कमजोर नहीं होने दिया.
इससे पहले भारत के सबसे मशहूर सिंगर ए. आर. रहमान की बेटी खतीजा द्वारा बुर्का पहन कर सबके सामने आने पर तस्लीमा ने कहा था की मुझे यह सब देखकर घुटन महसूस होती हैं. तस्लीमा के इस बयान पर खतीजा रहमान ने कहा था की अगर आपको घुटन महसूस होती हैं तो जाकर ताज़ी हवा में साँस लें.
भारत में वामपंथियों द्वारा ‘बोलने की आज़ादी’ और ‘फेमिनिज्म’ पर बड़े-बड़े लेख लिखे जाते हैं, वीडियो बनाई जाती हैं, सोशल मीडिया पर इसको लेकर प्रचार किया जाता हैं. मैगज़ीन और न्यूज़ के माध्यम से भी इसको लेकर बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं. लेकिन यह बोलने की आज़ादी और फेमिनिज्म तब बिलकुल शांत हो जाता हैं जब मामला गैर हिन्दू समाज से जुड़ा हो.
जिस फेमिनिज्म में घूँघट का मज़ाक उड़ाया गया, साडी का मज़ाक उड़ाया गया, शादी के लहंगे का मज़ाक उड़ाया गया क्योंकि वह औरत के जिस्म को पूरी तरह से ढक देते हैं. लेकिन वही फेमिनिज्म ईसाई सिस्टर्स की पोशाक और मुस्लिम लड़कियों के बुर्के का सम्मान भी करती नज़र आती हैं. तो यह जो सेलेक्टिव बोलने की आज़ादी और फेमिनिज्म हैं या केवल भारत में ही पाया जाता हैं.