केंद्रीय सरकार द्वारा लाये गए कृषि कानून के विरोध में किसानों ने भारत बंद का ऐलान कर डाला. ऐसे में भारतीय किसान संघ ने इसका विरोध करते हुए कहा की हम देश तोड़ो ताकतों का साथ नहीं दे सकते. शुरुआत में यह आंदोलन किसान से जुड़े मुद्दों का था. लेकिन धीरे धीरे यह आंदोलन खालिस्तानियों द्वारा हाईजैक कर लिया गया.
पंजाब में कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह ने भी किसानों द्वारा चलाये इस आंदोलन के तरीके का विरोध किया हैं. उधर पंजाब में अपनी राजनीती की तलाश कर रहे आम आदमी पार्टी और शिरोमणि अकाली दल किसान आंदोलन को खालिस्तान आंदोलन की तरफ धकेलने में लगे हुए हैं.
किसान नेताओं और सरकार के बीच 5 राउंड की बैठक हो चुकी हैं और इस 5 राउंड की बैठक का नतीजा कुछ भी नहीं निकला. इसलिए अब छठी बैठक 9 नवंबर को होने वाली हैं और किसानों ने 8 नवंबर को भारत बंद का ऐलान कर दिया. यह ऐलान किसानों नहीं बल्कि कांग्रेस, सपा, तृणमूल कांग्रेस, अकाली दल और आम आदमी पार्टी के किसान नेताओं ने किया हैं.
भारतीय किसान संघ ने राजनितिक पार्टियों पर आरोप लगाते हुए कहा है की किसानों का मकसद केवल तीनों कृषि कानूनों को रद्द करवाने का हैं. लेकिन राजनितिक पार्टियां अपने फायदे के लिए देश तोड़ो ताकतों के साथ मिलकर भारत बंद करवाने का ऐलान कर रही हैं. यह बयान किसान नेताओं और किसान संगठनों के बीच आपसी फूट साफ़ दर्शा रहा हैं.
भारतीय किसान संघ ने कहा है की अन्य राजनितिक पार्टियां इस आंदोलन में अराजकता फ़ैलाने का प्रयास कर रही हैं. उन्होंने मध्यप्रदेश 2017 का एक उदाहरण देते हुए कहा की तब भी राजनेताओं के भड़काऊ भाषणों के बाद मामला हाथ से निकल गया था. जिसमें पुलिस को कार्यवाही करनी पड़ी और 6 किसानों की मौत हुई, 32 गाड़ियां कुछ घर और दुकाने जलकर स्वाहा हो गयी थी.
भारतीय किसान संघ का यह बयान साफ़ दर्शाता हैं की राजनितिक पार्टियां पंजाब में अपनी राजनीती चमकाने के लिए इस आंदोलन को भड़काने के प्रयास में हैं. एक बार इतनी भीड़ भड़क गयी तो इसपर काबू पाना प्रशासन के लिए जितना मुश्किल होगा उतना ही विपक्ष के नेताओं को अपनी राजनीती चमकाने का मौका मिलेगा.