भारत में 2014 के बाद भारत में पहली बार हमने अवार्ड वापसी गैंग का ऐसा रूप देखा था. जहाँ पहले के समय में अवार्ड पाने वाले लोगों ने अपने अवार्ड लौटाते हुए सरकार की नीतियों और देश में फैली अराजकता का तो विरोध किया लेकिन अवार्ड के साथ मिलने वाली राशि सरकार को नहीं लौटाई. कुछ लोग तो ऐसे भी थे जिन्होंने कुछ महीनों के बाद अपने अवार्ड सरकार को जो लौटाए थे वही वापिस मांग लिए थे.
अब एक बार फिर हमें अवार्ड वापसी गैंग का वही रूप देखने को मिल सकता हैं. 1 दिसंबर को हुई किसानों और सरकार के बीच बैठक बेनतीजा निकली. दरअसल सरकार का कहना था की आप हमें इस बिल में वह प्रावधान बताएं जो किसानों के हित्त में नहीं हैं, फिर उसपर हम चर्चा करते हैं. दूसरी और किसान नेताओं का कहना हैं की, आप बिना चर्चा के सीधा इन तीनों बिलों को वापिस ले लीजिये.
पहली बात तो यह है की केंद्र सरकार ने यह जो बिल लाया है उसे पुरे देश में थोपा नहीं गया. इस बिल को जो राज्य मंजूरी देंगे वहां पर यह लागू हो जाएगा और जो राज्य मंजूरी नहीं देंगे वहां यह लागू नहीं होगा. पंजाब देश का पहला ऐसा राज्य था जहाँ इस बिल के विरोध में कानून लाया गया और इसे पंजाब में लागू होने से रोका गया.
इसके बावजूद आज पंजाब के किसान दिल्ली में अपने बच्चों और बुजुर्गों के साथ धरना देने के लिए बैठे हुए हैं. जबकि जिन किसान नेताओं ने इन तीनों बिलों के खिलाफ किसानों के मनो में भ्रम पैदा किया हैं, उनके बच्चे और उनके बुजुर्ग यहाँ तक वह खुद भी अपने घर की चार दीवारों के बाहर नहीं निकलते.
ऐसे में पंजाब की अवार्ड वापसी गैंग किस बिल के विरोध में अपने अवार्ड वापिस करना चाहती हैं? जो पंजाब में लागू ही नहीं हुआ? क्या वह अपने अवार्ड के साथ जो राशि सरकार की तरफ से मिली थी वह भी वापिस करेंगे?