जैसा की आप सब जानते हैं पंजाब देश का पहला ऐसा राज्य था जिसने केंद्र द्वारा लाये गए किसान बिलों को अपने राज्य में लागु न करने का ऐलान किया था. इसके बावजूद पंजाब के किसान न जाने क्यों इन बिलों के खिलाफ सड़को पर उतर आये और अलग अलग राजनितिक दल इनको लेकर दिल्ली कुछ कर दिए.
जैसा की आप जानते हैं जो अकाली दल पहले इन तीनों बिलो के समर्थन में था वह अब पंजाब की राजनीती को देखते हुए इन बिलों के खिलाफ खड़ा हो चूका हैं. अकाली दल NDA छोड़कर अब अकेले चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. इसके साथ ही AAP, और कांग्रेस नेता किसानों को भड़काने के लिए खालिस्तानियों का समर्थन कर रहें हैं.
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को लेकर ऐसे बयान दिए जैसे वह कोई मुख्यमंत्री न होकर आम नागरिक हों और कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकारी बाबू. गाँधी परिवार की बात करें तो बिहार चुनाव से पहले इन्होने पंजाब में ट्रैक्टरों पर रैलियां तो निकाली लेकिन बिहार चुनाव और उपचुनावों में हुए हार के बाद वो ठंडे पड़ गए.
वैसे भी 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में भी पंजाब की कांग्रेस इकाई ने गाँधी परिवार को चुनावों से अलग रखा था. इस बार भी पंजाब मुद्दे पर गाँधी परिवार को अमरिंदर सिंह अलग ही रखने वाले हैं. पंजाब एक ऐसा राज्य है जहाँ कांग्रेस कभी भी सत्ता में वापसी नहीं करती, ऐसे में 2022 का यह चुनाव अपने आप में बहुत ज्यादा दिलचस्प होने वाला हैं.
कांग्रेस में सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष करती नज़र आएगी, ऊपर से अमरिंदर सिंह और बाजवा की लड़ाई को कौन नहीं जानता. कांग्रेस के मोबाइल देने के वादे और घर-घर नौकरी देने के वादे भी महज़ चुनावी वादों तक ही सिमित रहे. ऐसे में इसका फायदा आम आदमी पार्टी उठा सकती थी लेकिन पंजाब की आम आदमी पार्टी का भी कलह किसी से छुपा नहीं हैं.
इन दोनों से ज्यादा शिरोमणि अकाली दल अपनी राजनीती चमकाने में लगी तो हुई है लेकिन बीजेपी उसके हिन्दू वोट काटने के लिए तैयार बैठी हैं. पंजाब में 40 प्रतिशत हिन्दू वोट हैं, जिसका फायदा शिरोमणि अकाली दल को तब मिलता था जब बीजेपी के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ती थी. अब देखना यह होगा किसानों पर हो रही इस राजनीती का सबसे ज्यादा लाभ किस पार्टी को 2022 में होता हैं.