कुछ पार्टियां ऐसी होती हैं जिनमें आपने मुख्यमंत्री पद की लड़ाई देखि होगी या फिर कुछ पार्टियां ऐसी होती है जिनमें अपने मंत्रिमंडल पद के लिए लड़ाई देखि होगी. लेकिन कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जो पिछले कई दशकों से सरकार तो नहीं बना सकी इस वजह से अब कांग्रेस नवनिर्वाचित कांग्रेस नेता विपक्षी दल का पद हासिल करने के लिए ही एक दूसरे से लड़ पड़े.
यह घटना तब हुई जब कांग्रेस सदाकत आश्रम में कांग्रेस नवनिर्वाचित विधायकों द्वारा एक कांग्रेस विधायक दल का नेता चुना जाना था. आपसी सहमति न बनने के चलते इन नवनिर्वाचित विधायकों ने सदाकत आश्रम को रणभूमि का मैदान बना दिया. जिससे साफ़ सन्देश यह गया की कांग्रेस के विधायकों में दो मत राय बन चुकी हैं.
ऐसे में HAM पार्टी के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने एक बयान देते हुए कहा की जो भी कांग्रेस का नवनिर्वाचित विधायक बीजेपी या NDA में शामिल होना चाहता हैं, हम उसका स्वागत करेंगे. दरअसल NDA की सरकार बिहार में भले ही बन चुकी हैं, लेकिन इस सरकार के पास जीत का बहुत बड़ा आंकड़ा नहीं हैं.
एक सरकार 5 साल के लिए चुनी जाती हैं, ऐसे में कुछ विधायकों की मृत्यु या फिर कुछ विधायक पार्टी से नाराज़ होकर पार्टी बदल लेते हैं. उस हिसाब से NDA पर सरकार गिरने का दबाव हमेशा बना रहेगा, इसी को देखते हुए NDA अपना गठबंधन और मजबूत करना चाहता हैं और वह इसके लिए कांग्रेस के नाराज़ विधायकों को लुभाने की कोशिश भी कर रहा हैं.
बिहार में कांग्रेस विधायकों के आपसी कलह में अब सुलह करवाने के लिए, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडे को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गयी हैं. हालाँकि ऐसी जिम्मेदारियां पहले भी कांग्रेस ने कई राज्यों में अपने अलग अलग नेताओं को सौंपी थी जो की विफल रही.
कांग्रेस विधायकों की यही शिकायत रहती हैं की कांग्रेस पार्टी की राज्य इकाई केंद्रीय इकाई को अपना सुझाव नहीं भेज सकती. ऐसे में पंजाब जहां अमरिंदर सिंह साफ़ तौर पर गाँधी परिवार को रैली करने से मना करता है और वह जीत हासिल कर लेता हैं. वहीं अन्य राज्यों में जहां-जहां केंद्रीय मंत्री ज्यादा शामिल होते हैं वहां पार्टी का प्रदर्शन पहले से और ज्यादा खराब हो जाता हैं.