बिहार में सभी ओपिनियन पोल्स के अनुसार NDA हार रही थी. तेजस्वी का 10 लाख नौकरी देने के वादे के आगे JDU को कोई मुद्दा नहीं मिल पा रहा था. जब आप 15 साल से सरकार में तो आप सड़कों, पानी और बिजली के नाम पर भी वोट नहीं मांग सकते. ऐसे में महामारी के चलते हुए पलायन, पटना की बाढ़ में बिहार की व्यवस्था को देखते हुए यह मुकाबला एक तरफ़ा नज़र आ रहा था.
ऐसे में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) ने अपने 20 उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का फैसला किया. यह 20 उम्मीदवार मुस्लिम बहुल इलाकों में उतारे गए. ऐसे में ओवैसी की पार्टी को वह वोट हासिल हुए जो पहले कांग्रेस या फिर आरजेडी के उम्मीदवारों को जाते.
मुस्लिम वोट NDA के पक्ष में नहीं होता यह सब जानते हैं, लेकिन मुस्लिम वोट इतना भी नहीं होता की उसके सामने 3-4 पार्टियों के ऑप्शन दे दिए जाये. ऐसे में साफ़ तौर पर आप उन 15 सीटों पर महागठबंधन और NDA के बीच में जीत के अंतर और ओवैसी के प्रत्याशी को मिले वोटों को देखेंगे तो आप अंदाज़ा लगा लेंगे की अगर ओवैसी अपने प्रत्याशी न उतारता तो वहां महागठबंधन आराम से जीत जाता.
बिहार 20 में से 5 सीट जीतने और महागठबंधन के वोट काटने के बाद अब ओवैसी ने पश्चमी बंगाल में चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया हैं. ऐसे में पश्चमी बंगाल में मुस्लिम वोटर्स के पास कांग्रेस और तृणमूल के साथ-साथ ओवैसी की AIMIM पार्टी को भी वोट देने का ऑप्शन प्राप्त हो जाएगा. कम्युनिस्ट वोटर दूसरी पार्टी को वोट नहीं देते ऐसे में हिन्दू वोट अधिकतर बीजेपी की तरफ रहा तो बीजेपी बंगाल में बहुत अच्छा प्रदर्शन कर सकेगी.
यह पार्टियां भले ही बीजेपी के खिलाफ गठबंधन बनाकर लड़े या फिर चुनाव से पहले अकेले ही मैदान में उतरे. अगर ऐसी सम्भावना बनती है की बीजेपी के पास सरकार बनाने का बहुमत न हुआ तो तृणमूल कांग्रेस त्रिकुंश सरकार बनाने से परहेज़ नहीं करेगी. लेकिन राजनितिक विषेशज्ञों का कहना है की, AIMIM द्वारा पश्चमी बंगाल में चुनाव लड़ने का सबसे बड़ा फायदा अंत में बीजेपी को ही मिलेगा. इसीलिए दूसरी पार्टियां AIMIM को बीजेपी की B Team कहते हुए सम्बोधित करती हैं.