प्रदुषण का हवाला देते हुए देश में बहुत सारे राज्यों में दिवाली पर पटाखा बैन कर दिया गया. उसके बाद जब विरोध हुआ तो कांग्रेस समर्थकों ने कहा की बीजेपी शासित राज्य मध्यप्रदेश में भी पटाखें बैन हैं, लोगों में इस बात को लेकर भ्रम पैदा किया गया की मध्यप्रदेश में भी पटाखें बैन हैं.
कल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट करते हुए कांग्रेस द्वारा फैलाये जा रहे लोगों का भरम दूर किया और लिखा की, “मध्यप्रदेश ख़ुशियों का प्रदेश है. यहाँ पर हम ख़ुशियों पर कभी भी किसी तरह का प्रतिबंध नहीं लगाते. प्रदेश में पटाखों पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हाँ, लेकिन चीनी पटाखों पर प्रतिबंध ज़रूर है. आप भगवान राम के अयोध्या लौटने की ख़ुशी मनाये, पटाखे जलाये एवं धूम-धाम से दिवाली मनाये!”
अब बात करते हैं, इन पटाखों के बैन होने से किनका सबसे अधिक नुक्सान होगा. तो यह नुक्सान बड़ी कंपनी का नहीं होगा वो एक नहीं तो दूसरे राज्य में अपने पटाखें बेच देगी लेकिन यह नुक्सान उन मजदूरों का होगा जो छोटे लेवल पर पटाखे बनाकर अपने गाँव या फिर अपने इलाके के कुछ हिस्सों में बेचते हैं.
पटाखा ऐसी चीज है जिसे आप अगले साल के लिए रख नहीं सकते, नमी से यह खराब हो जाते हैं. एक साल तक नमी से बचाकर रखना बहुत दिक्क्त वाला काम हैं और जो मजदूर यह पटाखें बनाते हैं वह गरीब वर्ग के होते हैं न की अमीर वर्ग के जो इन्हें इन्वेस्टमेंट के तौर पर देखें. कुछ लोग देवाली से कुछ महीने पहले मार्किट से सामान या फिर पैसा उधारी पर उठाकर बनाते हैं ऐसे में उनका क्या होगा कोई नहीं जानता.
एक आंकड़े के अनुसार भारत में लगभर 8 लाख गरीब परिवार दिवाली पर चलाये जाने वाले पटाखों को बनाने और उनकी उनकी बिक्री से अपना घर चलाते हैं. भारत में जितने पटाखे पुरे साल में नहीं चलाये जाए दीवाली की रात उससे कहीं ज्यादा एक से दो घंटे में चला दिए जाते हैं. लेकिन इस मुद्दे पर वो लोग आप चुप हैं जो रोजगार के प्रति देश भर में बड़े-बड़े भाषण देते फिरते हैं. जबकि इन मजदूरों का जो रोज़गार छीना गया हैं और जो नुक्सान इन मजदूरों का होगा उसकी भरपाई को लेकर राज्य सरकारों द्वारा कोई योजना भी नहीं बनाई गयी.