भारत में आज़ादी के 70 साल बाद भी नक्सलवाद ख़त्म नहीं हो सका, अलग अलग सरकारों ने अपने-अपने तरीके से कई अभियान चलाये, कई एनकाउंटर हुए, कई योजनाएं लाए, कई गिरफ्तारियां हुई लेकिन अभी भी देश के अंदर मजूद यह नक्सली भारतीय जवानों के लिए सरदर्दी बने हुए हैं.
इसको लेकर देश के गृहमंत्री ने बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र में नक्सलियों को खत्म करने के लिए जून 2021 तक की एक डेडलाइन दी हैं. उन्होंने एक मीटिंग के दौरान कहा की, “क्या, क्यों और कहाँ समस्या है, यह पता लगाने के लिए एक सख्त ऑडिट की जरूरत है.”
आपको बता दें की भारतीय सत्ता के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल के सशस्त्र आंदोलन के नाम पर कुछ लड़कों की फ़ौज तैयार की थी. यही हैं नक्सलवाद, यह लोग भारत अस्थिर रखने के प्रयास में रहते हैं. यह कभी भी देश में स्थाई सरकार नहीं देखना चाहते.
यह तब तक नहीं रुकना या खत्म होना चाहते जब तक देश में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार न बन जाए. ऐसे में यह लोगों में भारतीय सरकार के प्रति असंतोष की भावना पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. जंगलों में छिपकर अचानक गोरिल युद्ध स्टाइल में भारतीय जवानों पर हमला करना भी इनकी खुनी मानसिकता को दर्शाता हैं.
इसका नाम नक्सलवाद इसलिए पड़ा था क्योंकि यह सशस्त्र आंदोलन 1967 में पश्चिम बंगाल के गाँव नक्सलबाड़ी से शुरू किया गया था. मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसक थे और भारतीय मजदूरों और किसानों की दुर्दशा को सुधारने के लिए खड़े किये गए इस आंदोलन का मतलब केवल और केवल सरकार के प्रति भारतीयों के मन में अशंतोष पैदा करना भर था.
नक्सलवाद क्षेत्र में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिए केंद्र और राज्य सरकार का इतना पैसा लगता है की जितने में पुरे राज्य के विकास पर चार पहियें लग जाए. लेकिन यह पैसा विकास के किसी काम में नहीं आता. इस आंदोलन से शुरू होने से लेकर अब तक बहाये गए पैसे और और जवानों का खून कम लगता हैं जब ऐसे क्षेत्र में हमले की घटना सामने आती हैं. इसलिए अब अमित शाह ने डेड लाइन देते हुए उत्तर प्रदेश में हुए गुंडों के खात्में के तर्ज़ पर इसे ख़त्म करने का ऐलान कर दिया हैं.