अर्नब गोस्वामी को पुलिस ने 2 साल पहले बंद हो चुके केस को बिना कोर्ट की इज़ाज़त के खोला और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. यह घटना उस दौरान हुई जब अर्नब गोस्वामी लगातार मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र की सरकार के खिलाफ आवाज़ उठा रहे थे. उच्च न्यायालय में अर्नब गोस्वामी के वकीलों द्वारा दायर जमानत याचिका में कई चौंकाने वाले खुलासे भी किये गए.
अर्नब गोस्वामी के वकीलों की इस जमानत याचिका पर 7 नवंबर दोपहर 12 बजे न्यायमूर्ति एसएस शिंदे और एमएस कार्णिक की खंडपीठ सुनवाई की थी. वकीलों का कहना है की पुलिस ने बिना कोर्ट की जानकारी और बिना किसी नए सबूत या तथ्य के आधार पर पुराने केस को खोला हैं. इसलिए रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी को अंतरिम जमानत और सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए.
इस याचिका में बताया गया की कैसे पुलिस ने अर्नब गोस्वामी को जूतों से प्रताड़ित किया, उनके बाल नौचे गए और उन्हें इस तरह से पिटा की उनकी रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोट आ गयी. इसके इलावा पुलिस ने उन्हें घंटों पानी नहीं पिने दिया और फिर कुछ ऐसा पिलाया जो पिने लायक बिलकुल नहीं था, लेकिन पुलिस ने उन्हें पिने के लिए मजबूर किया.
घर से गिरफ्तार किये जाने के वक़्त पुलिस ने उन्हें जूते तक पहनने नहीं दिए और इस तरह से घसीटा की उनके हाथ पर लगभग 6 इंच लम्बा घाव बन गया. अंतरिम जमानत की याचिका का कल तीसरा दिन था, कोर्ट लगातार इस मामले का संज्ञान ले रही हैं, बॉम्बे कोर्ट ने इस केस पर आपत्ति भी जताई है और कहा है की आपको इस तरह के केस को खोलने से पहले न्यायिक मंजूरी लेनी चाहिए थी.
यह केस पुलिस और महाराष्ट्र के राज्य गृहमंत्री देशमुख पांडे की मिलीभक्त से खोला गया हैं. अर्णब गोस्वामी का प्रतिनिधित्व कर रहे भारतीय वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कल मुंबई उच्च न्यायालय में अपील देते हुए कहा की पुलिस एक ऐसे केस को लेकर अर्नब की पुलिस रिमांड को पाना चाहती है, जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 2019 में अर्णब को क्लीन चिट प्रदान कर दी थी.
हरीश साल्वे ने यह भी कहा की दुनिया में ऐसा कौन इंसान होगा जो व्यापार में हुए नुक्सान के बाद अपनी माँ के साथ आत्महत्या कर लेगा? हरीश साल्वे ने कहा की जिस केस में किसी कथित आरोपी को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने ही क्लीन चिट दे दी हो, उस केस को बिना किसी नए सबूत और तथ्य के बिना कोर्ट की इजाजत के पुलिस के पास केस ओपन करने का अधिकार आया कैसे?