महाराष्ट्र की राजनीती में थोड़ी हलचल बीजेपी पाले में हुई हैं, दरअसल 2014 में ही एकनाथ खडसे को किनारे करते हुए बीजेपी ने मुख्यमंत्री पद देवेन्द्र फडणवीस दे दिया था. 2016 में फिर एकनाथ खडसे का नाम भ्रस्टाचार में आ गया था, जिसके बाद उन्हें कैबिनेट मिनिस्टर पद से भी इस्तीफ़ा देना पड़ा था. 2014 के बाद से ही बीजेपी ने एकनाथ खडसे को अलग-थलग रखा हुआ था.
ऐसे में जब 2020 में इन्होने बीजेपी से अलग होने का आधिकारिक ऐलान किया तो मीडिया इसको महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए बड़ा झटका बता रही हैं. बड़ा झटका वह होता है जो मध्यप्रदेश में कमलनाथ को सिंधिया ने दिया था. फिलहाल महाराष्ट्र में पहले से ही बीजेपी विपक्ष में बैठी हुई हैं, ऊपर से उसकी पार्टी के ऐसे नेता ने अलग होने ऐलान किया हैं. जिसे बीजेपी ने 2014 से ही किनारे पर बिठाया हुआ था.
एकनाथ खडसे ने मीडिया से बातचीत करते हुए अपने इस्तीफे का कारण पूर्व सीएम देवेन्द्र फडणवीस को बताया. एकनाथ खडसे ने अरोप लगाया है की फडणवीस ने उनका राजनितिक कर्रिएर ख़त्म कर दिया हैं. उनका कहना हैं की फडणवीस बीजेपी के लिए सही नेता हैं, उन्होंने महाराष्ट्र में बीजेपी की स्थिति को कमजोर किया हैं. एकनाथ के इस्तीफे के बाद सबसे पहले NCP नेताओं के ब्यान आने शुरू हुए.
दरअसल 2014 के बाद से ही बीजेपी ने ऐसे नेताओं को किनारा करना शुरू कर दिया था जो बहुत ज्यादा महत्वकांशी होते हैं. जैसे की नवजोत सिंह सिद्धू, एकनाथ खडसे, उदित राज़ आदि. बीजेपी को यकीन था की, अगर बीजेपी को सत्ता में 20-30 साल बने रहना हैं तो उसे युवा नेताओं को आगे लाना होगा. जो पहले से 60-70 साल का है वो आगे 20-30 के लिए राजनीती में नहीं रहेगा.
एक बार अमित शाह ने अपने इंटरव्यू में कहा था की बीजेपी अब कम से कम 2040 से 2045 तक सत्ता में रहेगी. यानी उनका भारतीय राजनीती को लेकर आने वाले 20-25 सालों का एक विज़न हैं और इस विज़न में महत्वकांशी नेताओं के लिए किसी प्रकार की कोई जगह नहीं हो सकती. क्योंकि महत्वकांशी नेता कभी जनता के लिए काम नहीं कर सकेंगे और अंत में इसका पार्टी को ही नुक्सान होगा. यही कारण हैं की 2019 में टिकट बटवारे में बीजेपी ने कई ऐसे सांसदों का नाम काट दिया था जो 2014 में जीते तो थे लेकिन काम नहीं किए थे. नतीजा अमित शाह को 2019 में फिर एक बार पुरे देश में मोदी सरकार बनाने में कामयाबी मिली थी.