Jharkhand Assembly Election 2019: झारखंड विधानसभा के चुनाव (Jharkhand Assembly Election 2019) के नतीजे 23 दिसंबर 2019 को आएंगे! बता दें कि झारखंड विधानसभा में 81 सीटों पर मतदान हुआ है! नतीजे आने के बाद भाजपा के उस प्रयोग के लिए लिटमस टेस्ट साबित हो सकता है जो उसने 2014 के आम चुनाव में शानदार जीत के बाद शुरू किया था! भारतीय जनता पार्टी ने इस साल हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में जिन चेहरों को आगे किया था वे उन राज्यों की परंपरागत राजनीति से हटकर थे! बात करें हरियाणा की तो वहां पर जाट चेहरे की वजह नॉन जाट मनोहर लाल खट्टर को आगे किया! महाराष्ट्र जहां हमेशा से ही मराठों का दबदबा रहा है वहां भी भारतीय जनता पार्टी ने ब्राह्मण देवेंद्र फडणवीस को आगे किया! रही बात झारखंड की तो झारखंड में भी गैर आदिवासी चेहरा आगे किया!
2014 की मिली जीत 2019 की मिली जीत के आगे फीकी पड़ गए! क्योंकि भारतीय जनता पार्टी ने 2019 में 2014 से बड़ी जीत हासिल की! परंतु इस बार भारतीय जनता पार्टी का फार्मूला फेल हो गया! क्योंकि देखा जाए तो इस बार महाराष्ट्र और हरियाणा में नतीजे वैसे नहीं आए जैसे 2014 में आए थे! हरियाणा में भी भारतीय जनता पार्टी बहुमत हासिल नहीं कर पाई तो उन्हें JJP के दुष्यंत चौटाला के साथ हाथ मिलाना पड़ा! वहीं महाराष्ट्र में भी भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन तो पूर्ण बहुमत से आया लेकिन उनके सहयोगी ने झटका दे दिया! वहीं झारखंड से आधे एग्जिट पोल भी बता रहे हैं कि 2014 की तुलना में इस बार झारखंड में बीजेपी की सीटें कम हो गई है!
आखिर वजह क्या है? Opindia के अनुसार, इसका कारण है एंटी इंकबेंसी फैक्टर! जानकारी के अनुसार, राज्य में एंटी इंकबेंसी फैक्टर महत्वपूर्ण होता है! यदि खुद मुख्यमंत्री चुनाव हार जाए या फिर कुछ छोटे मार्जन से जीत जाए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है! प्रदीप भंडारी का कहना है कि “जन की बात” के सर्वे के अनुसार भारतीय जनता पार्टी झारखंड में 22 से 30 सीटें जीत सकती है! और गठबंधन को 37 से 46 सीट मिलने का अनुमान है! वही बात करें एबीपी न्यूज के सर्वे की एग्जिट पोल की तो भाजपा को 32 और गठबंधन को 35 सीटें मिलने का अनुमान है! इंडिया टुडे के अनुसार, भाजपा को 22 से 32 और गठबंधन को 38 से 50 सीटों तक का मिलने का अनुमान है!
सभी के एग्जिट पोल देखे जाए तो यह बात स्पष्ट होती है कि भाजपा पर गठबंधन का दबदबा दिख रहा है! लेकिन वही छोटे राज्यों में 1-2 सीट इधर-उधर होने पर अंतिम नतीजे अनुमान कुछ अलग हो जाएंगे! ऐसी स्थिति में किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिलना थोड़ा मुश्किल है! क्योंकि साल 2014 में भी बीजेपी लहर के बीच भारतीय जनता पार्टी मात्र 41 सीट भी नहीं जुटा पाई थी! उसमें भारतीय जनता पार्टी 72 सीटों पर लड़ कल मात्र 37 सीट ही जीत पाई थी! भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी को उस समय 5 सीटें मिली थी! बाद में राज्य के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम के भी आठ में से छह विधायक भाजपा के साथ आ गए थे! यहॉं गौर करने वाली बात यह है कि 2014 में भाजपा इतनी सीटें तब जीत पाई, जब उसकी स्थिति बेहद मजबूत बताई जा रही थी और विपक्ष को पस्त!
भाजपा के कमजोर होने की स्थिति में, जो राजनीतिक स्थिति सबसे अधिक अपेक्षित है, वह है त्रिशंकु विधानसभा! राज्य का राजनीतिक इतिहास भी इसी से जुड़ा है! यही कारण है कि झारखंड, जो बिहार से निकलकर अस्तित्व में आया, ने 19 साल की अपनी यात्रा में राजनीति में इतने बदलाव देखे हैं कि पूरा देश हमेशा उसकी राजनीतिक चाल पर नज़र रखता है! 2000-14 के बीच राष्ट्रपति शासन के तहत 9 बार और 3 बार मुख्यमंत्री बने राज्य ने पहली बार रघुवर दास के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करते हुए देखा है! इस राज्य में एक स्वतंत्र सीएम रहा है! शिबू सोरेन, जिन्हें अलग राज्य आंदोलन के कारण u गुरुजी ’कहा जाता था, को मुख्यमंत्री रहते हुए एक राजनीतिक नौसिखिए ने हराया है! इस राज्य ने राजनीति के रोमांच को भी देखा है जब डिप्टी सीएम खुद विधायकों को दिल्ली ले जाने वाले विमान को रोकने के लिए हवाई अड्डे तक दौड़े थे! इसलिए, इस राज्य में त्रिशंकु परिणाम होने पर राजनीति का नया पृष्ठ खुल सकता है! इस स्थिति में जो दो चेहरे बहुत महत्वपूर्ण होंगे, वे हैं बाबूलाल मरांडी और AJSU प्रमुख सुदेश महतो, जो राज्य के उपमुख्यमंत्री थे! सी-वोटरों के सर्वे में जेवीएम को 3 और एजेएसयू को 5 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है! एक्सिस माई इंडिया का पोल जेवीएम को 2 से 4 सीटें और एजेएसयू को 3 से 5 सीटें दे रहा है!
एग्जिट पोल के बाद से इन दोनों नेताओं के अगले कदम को लेकर कई अटकलें लगाई जा रही हैं! अज्जू सबसे पहले बोलने वाले थे! इस बार अकेले, जब अजु रघुवर सरकार में शामिल नहीं थे, तो वह अकेले चुनावी क्षेत्र में गए! सुदेश महतो पहले ही कह चुके हैं कि अलग चुनाव लड़ने का मतलब यह नहीं है कि भविष्य में बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं होगा! वैसे भी झारखंड की राजनीति में आजसू ज्यादातर समय भाजपा के साथ रही है! तो क्या भाजपा के पक्ष में एजेएसयू के समर्थन का फैसला किया जाना चाहिए? यह इस बात पर निर्भर करेगा कि भाजपा बहुमत से कितनी दूर रहती है! विपक्षी गठबंधन के मजबूत प्रदर्शन के सामने, अज्जू उसके साथ जा सकता है क्योंकि वह मधु कोड़ा के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल हो गया था! उस समय पार्टी के विधायक चंद्रप्रकाश चौधरी कोड़ा मंत्रिमंडल में मंत्री थे, जबकि सुदेश खुद विपक्ष में बैठते थे!
बाबूलाल मरांडी दूसरे व्यक्ति हैं जो राजा बन सकते हैं! मरांडी की राजनीतिक यात्रा भाजपा के साथ शुरू हुई! रिश्ता टूटने के बाद उन्होंने 2006 में अपनी पार्टी JVM बनाई! तब से, वे राज्य में भाजपा के विकल्प के रूप में उभरने की कोशिश कर रहे हैं! लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिली है! उन्होंने भाजपा के खिलाफ विपक्ष के व्यापक महागठबंधन बनाने का असफल प्रयास भी किया है! जेवीएम ने अब तक जितने भी विधानसभा चुनाव लड़े हैं, वे 10 प्रतिशत के करीब वोट पाने में कामयाब रहे हैं! पिछला लोकसभा चुनाव जेवीएम ने कांग्रेस गठबंधन के साथ लड़ा था! हालांकि, सीटों पर पेंच फंसने के बाद विधानसभा चुनाव में रास्ते बंट गए! यह व्यापक रूप से अनुमान लगाया जाता है कि मरांडी का झुकाव झामुमो गठबंधन की ओर हो सकता है! लेकिन, काबिलेगौर अब तक देखा गया है कि मरांडी की पार्टी के ज्यादातर विधायक चुनाव के बाद भाजपा के साथ जाते हैं! इस बार भी ऐसी किसी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है! मौजूदा परिस्थितियों से, ऐसा लगता है कि सुदेश और बाबूलाल चुनाव से पहले कोई भी समझौता करने में विफल रहे हैं, परिणाम के बाद उनकी लॉटरी लग सकती है! उनका रुख तय करेगा कि क्या महाराष्ट्र में हरियाणा जैसी सत्ता तक पहुँचने के लिए भाजपा को ‘दुष्यंत’ मिलेगा या महाराष्ट्र खुद को दोहराएगा!