Judge Magistrate Difference: हमारे देश में कानून प्रणाली है! संविधान है, पुलिस है, सेना है और ऐसे ही बहुत से डिपार्टमेंट है जो हमारी कानून प्रणाली की देखरेख करते हैं! लेकिन इनसे भी ऊपर आता है हमारा कोर्ट! जहां हर मुद्दे पर सजा या रिहा किया जाता है! कोर्ट में ही यह निर्णय लिया जाता है कि वह दोषी है या निर्दोष है! ऐसे में बहुत से लोग नहीं जानते की एक जज को मैजिस्ट्रेट (Judge Magistrate Difference) के बीच क्या अंतर होता है! किसका क्या काम होता है! आज हम आपको बड़े साधारण शब्दों में इसका अंतर बताने जा रहे हैं! तो आइए जानते हैं क्या मतलब होता है जज और मजिस्ट्रेट का?
Judge Magistrate Difference – कोर्ट में आते हैं दो प्रकार के मामले
व्यवहारिक मामला: पहले आता है हमारा व्यवहारिक मामला जिसको हम दीवानी मामला भी कहते हैं! इसके नाम से भी आपको इसका मतलब समझ में आ रहा होगा!
क्रिमिनल मामला: दूसरा आता है हमारा क्रिमिनल मामला जिसको दाण्डिक आमला और फौजदारी मामला भी कहा जाता है! दंड देने के सबसे आप समझ जाते हो कि किसी ने कुछ किया हो तो उसका सजा दे!
Judge Magistrate Difference – बताते हैं आपको जज और मजिस्ट्रेट में क्या अंतर होता है
जज: आपकी जानकारी के लिए बता दे जो मामले जैसे किअधिकार, क्षतिपूर्ति, मानहानि, आपसी झगडे या व्यावहारिक तौर से जुड़े होते हैं! ऐसे मसलों को व्यावहारिक मसले कहकर सिविल कोर्ट में भेज दिया जाता है! इसके अलावा तलाक, चालान आदि मामले भी सिविल कोर्ट की देखता है! ऐसे मामलों की सुनवाई जज करता है!
मजिस्ट्रेट: आपकी जानकारी के लिए बताते हैं जैसा कि हमने आपको भी ऊपर बताया कि दूसरा नाम में आता है क्रिमिनल मामला! जिसमें अपराध के लिए दंड की मांग की जाती है! ऐसे मामलों में दोषी के ऊपर मुआवजा, सजा या वो दोषी है या नहीं है यह सब देखा जाता है! यह सब जज नहीं देखता बल्कि मजिस्ट्रेट देखता है! इसलिए आपको बता दें मजिस्ट्रेट को दंडाधिकारी भी कहा जाता है!
उम्मीद करते हैं कि आपको सीधी भाषा में जज और मजिस्ट्रेट के बीच का अंतर मालूम हो गया! अगर आपको हमारा आर्टिकल पसंद आया तो आप इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें! ताकि और लोग भी जान सके जज और मजिस्ट्रेट के बीच में क्या अंतर होता है!