Son-Mother Story: माँ तो आखिर माँ ही होती है! अपने बच्चो के लिए जो काम एक माँ करती है उसकी उम्मीद किसी और से नहीं की जा सकती है! माँ ही दुनिया में एक ऐसी बनाई जो बच्चो की जीत में अपनी सफलता को खोज लेती है! मानो की ये जीत उसके बच्चे की नहीं बल्कि उसकी हो! आज आपके सामने हम भी एक ऐसी ही कहानी लेकर आये है!
विज़न लोस्स की बीमारी है मनु को
हाल ही में आये CBSE के 12वीं ह्यूमैनिटीज में 93.6 प्रतिशत मार्क्स हासिल करने वाले मनु गर्ग की सफलता में उनकी मां वंदना गर्ग का बड़ा रोल रहा है! आपको बता दे कि मनु मनु को नौंवी के बाद ही विजन में परेशानी होने लगी थी! मनु की धीरे-धीरे 75 प्रतिशत तक विजन लॉस हो गया! इस बीमारी को मैकुलर डीजनरेशन कहा जाता है! भारत में हर साल इसके 10 लाख से अधिक मामले सामने आते है!
मिले 100 में से 100
मां वंदना गर्ग बताती हैं, मैंने एमए किया है, लेकिन 22 साल बाद उसने मनु के लिए पढ़ाई शुरू की! अच्छी बात यह थी कि मेरी अंग्रेजी बेहतर थी! स्कूल से जो भी मनु सीखकर आता, मैं उसे किताब देने के बाद और उसे रिवीजन करवा देती! जबकि कंप्यूटर मुझे इसे पढ़ने को मिलता है! कभी इसने मुझे सिखाया, कभी मैंने इसे सिखाया! आईपी में इसके 100 अंक हैं!
मनु : हार नहीं मानी
मनु कहते हैं कि कई लोगों को मुझसे ज्यादा परेशानी है, लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी है! इसलिए मुझे खुद को कमजोर क्यों देखना चाहिए? कभी-कभी मुझे निराशा होती थी! लेकिन मैंने इससे निपटना सीख लिया! मैंने स्कूल में जो भी पढ़ा! मैंने उसे बहुत ध्यान से सुना, फिर घर आकर अपनी माँ को बताया! इस तरह हम दोनों की बॉन्डिंग हो गई!
माँ : मेरी यात्रा जारी रहेगी
मनु सेंट स्टीफंस कॉलेज से पढ़ाई करना चाहता है और भविष्य में आईएएस बनना चाहते है! खुशी से खुश मां वंदना कहती हैं, यह जहां भी है, मैं इसके साथ रहूंगी, जब तक आईएएस नहीं बन जाये, मेरी यात्रा भी जारी रहेगी!