Sanjay Gandhi Death Mystery: सभी जानते हैं कि नेहरू-गांधी परिवार के चारों ओर रहस्य का एक घेरा हमेशा मौजूद है! उनकी मूल वंशावली, जन्म, शिक्षा, धर्म, विवाह, सन्तानों, विदेश, आमदनी के स्रोत, बीमारी, चिकित्सा और मृत्यु तक की घटनाओं पर संज्ञा का आवरण मानकर डाल दिया गया है! इस सम्बन्ध में कोई सवाल उठाने पर या तो एकदम चुप्पी साध ली जाती है या सवाल पूछने पर ही गुस्सा आता है! आश्चर्य है कि इतने पर भी कांग्रेसी कार्यकर्ता और उसके मतदाता इस परिवार के प्रति अंधभक्ति रखते हैं और हर परिस्थिति में यह भक्ति बनी हुई है!
Sanjay Gandhi Death Mystery –
इन गाँवों के दूसरे पुत्र संजय गाँधी की मृत्यु भी उन कई घटनाओं में से एक है जिसकी वास्तविकता आज तक दर्शाने की घेरे में है! मैंने लिखा है कि आप को अकाल के दिनों में संजय गाँधी एक असंवैधानिक सत्ता केंद्र के रूप में उभरे थे और भारत सरकार के प्रधान कार्यालय के बजाय प्रधानमंत्री निवास से चलायी जा रही थी! दूसरे शब्दों में वे सुपर प्रधानमंत्री के रूप में कार्य कर रहे थे! उनकी मनमानी के कारण ही 1977 के चुनावों में कांग्रेस की मिट्टी पलीत हुई थी! लेकिन चौधरी चरण सिंह की मूर्खता के कारण 1979 में जनता पार्टी की सरकार गिर गई और 1980 में हुए चुनावों में कांग्रेस को फिर सत्ता में आने का मौका मिल गया! इस बार संजय गाँधी और अमेठी क्षेत्र से चुनाव जीतकर आये, जहाँ से वे 1977 में बुरी तरह हारे थे!
इन गाँवों में संजय को अपने उत्तराधिकारी के रूप में तैयार कर रहे थे! इसलिए इस बार उन्हें पार्टी के महामंत्री पद पर बनाए रखा गया! इन गाँवों में कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे, लेकिन पूरे अधिकार वास्तव में संजय गाँधी के हाथ में थे! इतना ही नहीं पार्टी के अलावा सरकार के तमाम अधिकार भी अघोषित रूप में संजय गाँधी के हाथों में थे और वे मनचाहे तरीके से कार्यपालिका को चले जा रहे थे! विपक्ष बुरी तरह हताश था, जनता पार्टी टुकड़ों में टूट गई थी, इसलिए संजय गाँधी के अधिकारों को कोई प्रभावी चुनौती नहीं थी! वैसे भी वे पर्दे के पीछे रहकर अपनी हरकतों को चलाते थे, इसलिए किसी को सही उंगली उठाने का मौका नहीं मिला था!
इसी समय संजय को स्कॉप्टर उड़ाने का शौक चर्राया! सफदरजंग हवाई अड्डे पर एक उड़ान क्लब है, उसकी उड़ान लेने और हवाई जहाज उड़ाना सीखने में संजय गाँधी को कोई कठिनाई नहीं हुई, हालाँकि वे हाईस्कूल की परीक्षा भी नहीं कर पाए थे! इस क्लब के तमाम नियमों को धता बताते हुए वे अपनी मनमर्जी के कभी भी हेलीकॉप्टर उड़ाया करते थे और उसके साथ खेल किया करते थे! ये एक खेल ऐसा होता था कि दूर से हेलीकॉप्टर उड़ाकर लाते हुए गोता लगाकर किसी ऊँचे पेड़ की सबसे ऊँची डाल के पत्तों को छूने की कोशिश करते थे! यह बहुत ही खतरनाक खेल था, पर संजय गाँधी को रोकने-दिखाने वाला कोई नहीं था!
संजय गाँधी की दुर्घटना
ऐसे ही एक दिन यह खेल करते हुए संजय गाँधी का हेलीकॉप्टर अनियंत्रित हो गया और वह पेड़ की डाल को छूने के बजाय जमीन से टकराया! कहने की आवश्यकता नहीं है कि जमीन से टकराकर वह हेलीकॉप्टर चूर-चूर हो गया और उसको चला रहे संजय गाँधी और एक अन्य व्यक्ति बुरी तरह क्षत-विक्षत होकर मौत के मुँह में चले गए! वह 23 जून 1980 का दिन था!
जब यह दुर्घटना का समाचार फैला तो सब स्तब्ध रह गए! कांग्रेसियों की पहली विकलांगता यह थी कि इसमें अमेरिका गुप्तचर संस्था सी.आई.ए. का हाथ है! एक बड़े मंत्री ने तत्काल आकस्मिक की न्यायिक जाँच की घोषणा कर दी, जिससे सबने सोचा कि जो भी वासतविकता को संबोधित करेगा, वह होगा! लेकिन जैसे ही यादों में गाँधी को इसका पता चला, उन्होंने तुरंत न्यायिक जाँच की घोषणा को रद्द कर दिया, हालाँकि लॉन में यह जाँच आवश्यक थी! कहा जाता है कि दुर्घटना की खबर मिलते ही सबसे पहले इन्दिरा गाँधी स्वयं कार से दुर्घटना स्थल पर पहुँची और वहाँ से एक चाबी का गुच्छा और संजय गाँधी की एक दी के बारे में गयी गयीं! उसके बाद ही पुलिस को वहाँ जाने दिया गया!
अगर इस दुर्घटना की जाँच होती है, तो कई सवाल उठाए जाएंगे जाते हैं, जैसे- संजय को स्कॉप्टर क्लब की सदस्यता किस आधार पर दी गयी, उन्हें हेलीकॉप्टर उड़ाने का लाइसेंस किस आधार पर दिया गया, वे कब-कब क्लब जाते थे और कितनी देर में उन्हें रद्द कर दिया गया। उड़ाया करते थे, उनकी उड़ानों का खर्च कौन उठाता था आदि-आदि! हालांकि ये सभी सवाल अखबारों और विपक्षी दलों ने भी उठाए थे, लेकिन उनका कोई जवाब नहीं दिया गया और मामले को रफा-दफा कर दिया गया! आज भी कोई नहीं जानता है कि यह दुर्घटना क्यों और कैसे हुई! केवल 33 वर्ष 6 महीने की उम्र में देश का एक ’भावी प्रधानमंत्री ‘अपनी मूर्खता का शिकार बन गया!