सरकार अनगिनत रुपये छापकर देश की गरीबी को क्यों दूर नहीं कर देती?

Government remove poverty country printing countless rupees: भारत सरकार के पास रुपये छापने वाली मशीन है यह सच है और यह सभी देशों के पास होता है!

Government remove poverty country printing countless rupees-

पहली बात कि रूपये की स्वतः कोई मूल्य नहीं है! इसका मूल्य इससे मिलने वाली वस्तु के कारण है! अर्थात मूल्य वस्तु में है कागज के नोट में नहीं! उदाहरण के लिए मान लीजिए आप के पास 100000 रूपया है और आप चावल खरीदना चाहते हैं और वह बाजार में उपलब्ध भी है तो आप अपने पास उपलब्ध रूपये का उपयोग कर सकते हैं! अब मान लीजिए आप कुछ ऐसी वस्तु खरीदना चाहते है! जो अपने देश के बाजार में उपलब्ध नहीं है! तो आपके 100000 रुपये का कोई महत्व नहीं है!

एक और उदाहरण:

एक ऐसी परिस्थिति की कल्पना कीजिए जिसमें बाजार में केवल 10 किलोग्राम गेहूं उपलब्ध है और आपको 100 किलोग्राम की आवश्यकता है! आपके पास 1000000 रूपया है फिर भी आप अधिकतम 10 किलोग्राम खरीद सकते है! इसका मतलब है कि मूल्य वस्तु की उपलब्धता पर निर्भर करता है!

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आप जिस कागज के रूपये की बात कर रहे है उसका व्यापार में सुगमता के लिए उपयोग किया जाता है!

अनगिनत रुपये छापकर देश की गरीबी को दूर नहीं कर देती:

अनगिनत रुपया छाप सकते है परन्तु इससे वस्तु की उपलब्धता नहीं बढ जाएगी और ना ही इससे गरीबी दूर होगी क्योंकि वस्तुओं का मूल्य भी उसी के अनुरूप बढ जाएगा!

उदाहरण:दो स्थिति की कल्पना कीजिए

पहली स्थिति:

पाँच लोग गेहूं (3 लोग अमीर +2 लोग गरीब) खरीदने के लिए बाजार गए है और पाँच लोग के पास इस क्रम में 1000,800,600,400,200 रूपया है और सभी को 10 किलोग्राम गेहूं खरीदना खरीदना है! बाजार में 30 किलोग्राम गेहूं की उपलब्धता है! इस स्थिति में पहले तीन तो खरीद सकते हैं पर अंतिम दो नहीं खरीद पाएंगे जबकि अंतिम दो के पास भी पैसा है!

दूसरी स्थिति:

आपके अनुसार सरकार ने पैसा छाप कर अंतिम दो को 1000 और 1000 रूपया दे दिया इस स्थिति में भी सिर्फ तीन लोग ही खरीद पाएंगे अगर 10 किलोग्राम का लिमिट होगा!

अतः रूपया छापने से गरीबी नहीं दूर हो सकती परन्तु महगाई अवश्य बढ जाएगी!

भारत के ऊपर जो विदेशी कर्ज है उसे तुरंत ही चुका क्यों नहीं देती :

भारत के ऊपर जो कर्ज है वह डाँलर का है और डाँलर की उपलब्धता हमारे पास सीमित है! (लगभग 460 बिलियन डाँलर) !

डाँलर की प्राप्ति हमें निम्न स्रोतों से होती है:

निर्यात से अर्थात जब हम अपने यहाँ से किसी वस्तु को किसी दूसरे देश में बेचते हैं तो हमें डाँलर मिलता है! विदेशी निवेश से अर्थात जब कोई विदेशी कम्पनी भारत में निवेश करती है तब वह अपने साथ डाँलर लेकर आती है! विदेशों में रहने वाले भारतीयों के द्वारा जो पैसा भेजा जाता है वह डाँलर के रूप में भारत को मिलता है! विदेशी पर्यटकों के द्वारा भी डाँलर प्राप्त होता है! अतः कर्ज चुकाने के लिए हमें अमेरिकन डाँलर की आवश्यकता है जिसका भारतीय रूपया के छापने से कोई लेना देना नहीं है!

बढ़ती हुई महँगाई पर काबू नहीं पा लेती?

ये सवाल ऊपर पूछे गए सवाल का व्याघात है क्योंकि अधिक रूपया छापने से महँगाई बढ जाती है! इसीलिए आरबीआई को जब भी महँगाई को काबू करना होता है तो वह अपनी मौद्रिक नीति में बदलाव करता है अर्थात ब्याज दरें बढा देता है जिससे रूपये की उपलब्धता बाजार से कम हो जाए और महँगाई अपने आप कम हो जाएगी!

कुछ रोचक तथ्य नोटों के बारे में

भारत(India) में RBI को नोट छाप ने अधिकार एवं दायित्व है और नोट इन्ही के द्वारा छपे जाते है!

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RBI अधिकतम ₹ 10,000 तक के नोट ही छाप सकता है!

ज़िम्बाव्बे(Zimbabwe) ने हज़ार खरब(100 Trillion) तक के नोट छपे!

इस दृश्य (Picture) में यहाँ बच्चा अपने लिये चॉकलेट(Chocolate) खरीदने जा रहा है!

निष्कर्ष

ज्यादा करेंसी छापने से मंहगाई, मुद्रा अवमूल्यन, ज्यादा विदेशी कर्ज और देश की गरीबी में बढ़ोत्तरी ही होगी न कि कोई अन्य लाभ प्राप्त होगा!

Government remove poverty country printing countless rupees-आशा है की आप सभी को हमारा आर्टिकल पसन्द आया हो!

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