भारतीय सिनेमा के सदाबहार गायक कहे जाने वाले मोहम्मद रफी जी का जन्मदिन अभी 24 दिसंबर को ही बीता है. हम आपको बता दें कि रफी साहब ने अपने जीवन में सुख दुख प्रेम देश भक्ति भजन बालगीत लगभग हर मिजाज के गीत को अपनी आवाज दी है. हम आपको बता दें कि रफी साहब व्यवहार में बहुत ही कम बोलने वाले और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति थे.
ऐसा कहा जाता है कि रफी साहब ने अपने गांव में गाने वाले फकीरों को देख देखकर गाना गाना शुरू किया था. हम आज आपको इस लेख के जरिए बताने जा रहे हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि रफी साहब ने एक हद से वापस लौटने के बाद गानों में अपनी आवाज देना छोड़ दिया.
हम आपको बता दें कि रफी साहब जो कि एक बहुत बड़े धार्मिक व्यक्ति भी थे एक बार हज पर भी गए थे उन दिनों वह अपने करियर के चरम पर थे. आपको बता दें कि रफी साहब जब हज कर कर वापस आए तब कुछ धर्मगुरुओं और लोगों ने उन्हें सलाह दी कि अब आप हाजी हो गए हैं, और आपको गाना गाना छोड़ देना चाहिए.
उन सभी की यह बात सुनकर रफी साहब ने बॉलीवुड में गाना गाना छोड़ने का निर्णय ले लिया. हम आपको बता दें कि यह खबर सुनते ही बॉलीवुड में हड़कंप समझ गया और सभी चिंतित हो गए कि आखिर उनकी फिल्मों में गाना अब कौन गाएगा.
हम आपको बता दें कि सभी बॉलीवुड के मशहूर एक्टर डायरेक्टर एवं अन्य कलाकारों के मनाने के बाद रफी साहब अंतत गाना गाने को तैयार भी हो गए. आप को बता दे रफी साहब ने हिंदी के अलावा कई भारतीय भाषाओं में भी गीतों को अपनी आवाज दी है. हम आज आपको बता दें कि रफी साहब ने लगभग 26 हजार गीतों में अपनी आवाज दी है.
यूं तो बॉलीवुड में गाया हुआ उनका हर गाना बेहद अच्छा और सब का पसंदीदा होता था. लेकिन फिल्म द ट्रेन में उनका गाया हुआ गाना गुलाबी आंखें जो तेरी देखी, और फिल्म पत्थर के सनम का गाना पत्थर के सनम तुझे हमने एवं इसके अलावा जीने की राह फिल्म का गाना आने से उसके आए बहार काफी चर्चित रहा. बॉलीवुड में आज तक इस गाने को अलग-अलग तरह से गाया जाता है लेकिन जो आवाज और गाने की अहमियत रफी साहब की आवाज में है वह किसी और के गाने में नहीं.