विटामिन डी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता और हड्डियों के विकास के लिए जरूरी माना जाता है। अमेरिका में हाल ही में हुए एक मेडिकल सर्वे में सामने आया है कि वहां के 40 फीसदी से ज्यादा लोगों में विटामिन डी की कमी पाई जाती है. सीनियर गायनोकोलॉजिस्ट रेणु चावला के मुताबिक अगर किसी महिला में विटामिन डी की कमी होती है तो उसके पीरियड्स नियमित नहीं आते हैं. हमेशा थकान रहेगी, बदन दर्द रहेगा। अगर वह गर्भवती है तो इसका असर उसके साथ-साथ बच्चे के स्वास्थ्य पर भी पड़ेगा। बच्चे की हड्डियों का विकास नहीं होगा और उसका सामान्य कार्य भी प्रभावित होगा। उसकी सोचने की शक्ति कम होगी।
डॉक्टरों के अनुसार शरीर में विटामिन डी का स्तर 30 से 60 एनजी/एमएल होना चाहिए। इससे कम या ज्यादा होना आपके लिए परेशानी का सबब बन सकता है। विटामिन डी की कमी से क्या होता है, इसके बारे में आपने कई बार डॉक्टरों से सुना होगा। लेकिन हम यहां आपको बता रहे हैं कि अगर शरीर में विटामिन डी की मात्रा ज्यादा हो जाए तो क्या हो सकता है। यह जानकारी डॉ. रेणु चावला ने दी।
पेट दर्द, कब्ज और थकान:
विटामिन डी हमारे भोजन से कैल्शियम लेने में मदद करता है। शरीर में कैल्शियम की मात्रा 8.5 से 10.8 mg/dL ही होनी चाहिए। कैल्शियम की अधिक मात्रा होने पर हमारा पाचन तंत्र प्रभावित होता है। पेट में मरोड़, कब्ज और थकान का अहसास होगा। अधिक पेशाब आना, भूख न लगना, गुर्दे की पथरी, उच्च रक्तचाप, निर्जलीकरण और हृदय संबंधी रोग होंगे। अतिरिक्त कैल्शियम जीवन पर भारी पड़ सकता है।
डिप्रेशन और पागलपन:
शरीर में विटामिन डी की अधिकता होने से कैल्शियम की अधिकता भी हो जाती है। यह दिमाग के काम करने के तरीके को प्रभावित करता है। अवसाद, भ्रम और मनोविकृति जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। अगर आपको लगता है कि आजकल आप जरूरत से ज्यादा नेगेटिव होते जा रहे हैं, या छोटी-छोटी बात भी आपको डिप्रेस करती है और कन्फ्यूज करती है, तो आपको डॉक्टर से संपर्क कर इसकी जांच करानी चाहिए।
किडनी खराब:
विटामिन डी की अधिकता भी कई विफलताओं का कारण बन सकती है। क्योंकि इसके उच्च स्तर के कारण रोगी को बार-बार पेशाब आता है और इस वजह से उसके शरीर में पानी की कमी हो जाती है। किडनी में मौजूद रक्त वाहिकाएं सिकुड़ जाती हैं, जिससे किडनी का पूरा कार्य प्रभावित हो जाता है।