happened Karnataka exactly happened Bihar: ये कहानी सुनकर आपके ज़ेहन में कर्नाटक, वजुभाई वाला और येदियुरप्पा जैसे शब्द आ रहे होंगे. आने भी चाहिए. कर्नाटक में जो हुआ है, वो कुछ दिन तो याद रहेगा ही. लेकिन डिट्टो यही कहानी आज से 18 साल पहले भी घटी थी. बस पात्र दूसरे थे और लोकेशन थी बिहार. मज़े की बात ये है कि तब भी केंद्र में एनडीए की ही सरकार थी.
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अटल बिहारी वाजपेयी और बिहार के गवर्नर वीसी पांडे
इस कहानी के पात्र हैं राबड़ी देवी (पढ़ें लालू प्रसाद यादव), नीतीश कुमार, केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी और बिहार के गवर्नर वीसी पांडे. कहानी का पूरा मज़ा आए, इसलिए ये ज़रूरी है कि हम ये जानें कि इन पात्रों के बीच ट्यूनिंग कैसी थी. और इस ट्यूनिंग को समझने के लिए आपको एक छोटू सी कहानी और सुननी पड़ेगी.
छोटू वाली कहानी-
एक था जंगल. माने था वो हिंदुस्तान का एक राज्य ही. लेकिन वहां की सरकार को जंगलराज कहा गया था. खैर, इस जंगल का नाम था बिहार और यहां का राजा शेर नहीं, लालू प्रसाद यादव कहलाता था. लालू राज भी करते थे और चारा भी खाते थे. और उन्होंने इतना चारा खाया कि सीबीआई वालों को कहना पड़ा, दिस इस जस्ट नॉट डन. कोर्ट कचहरी में मामला चल निकला.
अब लालू थे राजा लेकिन उनसे ऊपर भी एक सरकार थी. तो उन्हें जाना पड़ा जेल. लेकिन लालू अपने खड़ाऊ छोड़ गए जिन्हें कुर्सी पर रखकर राबड़ी देवी ने राज किया. उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली 25 जुलाई, 1997 को.
असली वाली कहानी-
साल 2000 में बिहार में चुनाव हुए. जनता का एक बड़ा धड़ा लालू की रवानगी चाहता था. लेकिन लालू की पकड़ न बिहार प्रशासन पर कमज़ोर पड़ी थी, न वहां की राजनीति पर. ऐसे माहौल में हुए चुनाव ने एक खिचड़ी विधानसभा को जन्म दिया. कोई भी पार्टी सरकार बनाने के लिए ज़रूरी 163 के आंकड़े के पास तक नहीं पहुंच पाई. लालू के पास 123 सीटें आईं. इनमें भी कुछ ऐसी थीं जिनपर एक ही प्रत्याशी (जैसे लालू) ने दो जगह से चुनाव लड़ा था.
बाकी सीटें भारतीय जनता पार्टी (67), समता पार्टी (34), और जनता दल युनाइटेड (21), झारखंड मुक्ति मोर्चा (12), सीपीआई (6), सीपीई एमएल (6), सीपीएम (2), और बसपा (5) में बंट गईं.
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