राजीव गांधी का मरने वाला दिन आप भी देख लो कैसे हुई..

Rajiv Gandhi assassinated: ‘राजीव गाँधी मारे गए!’ बुश हाउस की पाँचवीं मंज़िल पर स्थित हमारे ऑफ़िस में एक आवाज़ गूँजी. वह 21 मई 1991 की शाम थी और लंदन में शायद पौने सात बज रहे थे. मैं बस मिनट भर पहले अपने डेस्क पर लौटी थी. ‘यह कैसे हो सकता है?’ मैंने ख़ुद से कहा.

Rajiv Gandhi assassinated

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‘राजीव तो मद्रास में कहीं चुनाव प्रचार कर रहे हैं’.

जवाब आया- ‘ख़बर सच है. कुछ एजेंसियों ने फ़्लैश कर दी है. प्रचार के दौरान एक बम विस्फोट में राजीव गाँधी की मौत हो गई.’ तभी एक और सहयोगी ने बताया कि न्यूज़ रूम ख़बर की पुष्टि करने की कोशिश कर रहा है. मुझे सिहरन सी महसूस हुई. राजीव गाँधी की कई तस्वीरें एक साथ कोलाज की तरह मेरी आँखों के सामने कौंध गईं.

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राष्ट्र के नाम पहला संदेश

पहली तस्वीर थी, 31 अक्तूबर 1984 की रात की जब श्रीमति गाँधी की हत्या के बाद राजीव ने राष्ट्र के नाम पहला संदेश दिया था. उन दिनों मैं दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो में प्रोग्राम एक्ज़िक्यूटिव थी और इस हैसियत से उस रात श्रीमति गाँधी के दफ्तर, 1 अकबर रोड पर नए प्रधानमंत्री के पहले राष्ट्र के नाम संदेश को रिकॉर्ड करने के लिए अन्य सहयोगियों के साथ मौजूद थी. रात काफ़ी हो चुकी थी और कई शहरों से आ रहीं सिख विरोधी दंगों की ख़बरों के बीच सबकुछ बहुत जल्दबाज़ी में हो रहा था. मुझे याद है, राजीव को हिंदी के कुछ शब्दों के उच्चारण में दिक़्क़त पेश आ रही थी. सच तो यह है कि वो मेरी लिखाई पढ़ने की कोशिश कर रहे थे.

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राजीव की अमरीका यात्रा

आसपास कोई टाईपराइटर नहीं था. अमिताभ बच्चन ने पूछा, ‘हिंदी में किसी की लिखावट अच्छी है?’ और मैंने लिखने की ज़िम्मेदारी स्वीकार की. मुझे राजीव गाँधी की अमरीका की पहली राजकीय यात्रा भी याद आई जिसके दौरान उन्होंने अमरीकी कांग्रेस के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया था और उनके इन शब्दों ने सभी को प्रभावित किया था, ‘भारत एक प्राचीन देश है, लेकिन एक युवा राष्ट्र है और हर युवा की तरह हममें अधीरता है. मैं भी युवा हूँ और मुझमें भी धीरज की कमी है.’ मैं ऑल इंडिया रेडियो के लिए राजीव गाँधी की अमरीका यात्रा की दैनिक रिपोर्टें भेजने के लिए वॉशिंगटन में मौजूद थी.

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अनिच्छा से राजनीति में आए थे…

शायद इसलिए कि मैंने राजीव गाँधी को उस रात देखा था जिस रात वो अनिच्छा से राजनीति में आए थे. और एक वजह यह भी है कि उस रात जो कार्यक्रम मैंने प्रस्तुत किया उसके लिए एशिया ब्रॉडकास्टिंग यूनियन का पुरस्कार भी मिला. बहरहाल, जैसे-जैसे समाचार एजिंसियों पर राजीव गाँधी की मौत के समाचार का ब्योरा आने लगा, बुश हाउस में लोगों का आना शुरू हो गया. दूसरे विभागों और दुनिया भर से अन्य प्रसारण संस्थाओं के फ़ोन आने लगे. सभी बीबीसी हिंदी सेवा से समाचार की पुष्टि करना चाहते थे. इस बीच हिंदी सेवा के अध्यक्ष कैलाश बुधवार, पूर्वी सेवा के अध्यक्ष विलियम क्रॉली और उपाध्यक्ष डेविड पेज भी आ पहुंचे.

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राजीव की आवाज़

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मुझे कार्यक्रम की तैयारी करनी थी जो भारत में सुबह 6.20 पर प्रसारित होना था. क़िस्मत से शाम की टीम अभी मौजूद थी और इस बीच हिंदी सेवा के कुछ और साथी भी अपने अपने घरों से आ गए. किसी ने राजीव गाँधी की आवाज़ ढूँढ़ने के लिए हिंदी सेवा की पुरानी रिकॉर्डिंग्स को खँगालना शुरू किया. जो पहला टेप हमें मिला वह 1986 में दिया गया उनका एक वक्तव्य था.राजीव से जब यह पूछा गया था कि आप किस रूप में याद किए जाना पसंद करेंगे तो उनका उत्तर था- ‘एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो भारत को 21वीं सदी में लेकर गया और जिसने उसके माथे से विकासशील देश का लेबल हटाया.’

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भारत में आधी रात हो चुकी थी

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जब तक हमारी संपादकीय मीटिंग ख़त्म हुई और कार्यक्रम की एक कच्ची रूपरेखा तैयार हुई, तब तक भारत में आधी रात हो चुकी थी. हज़ारों मील की दूरी से किसी ख़बर का विवरण जुटा पाना एक मुश्किल काम है. 1991 में यह चुनौती और भी बड़ी थी. उन दिनों भारत में टेलिफ़ोन लाइनें उतनी आसानी से नहीं मिलती थीं जितनी आसानी से आज मिलती हैं. फिर, 90 के दशक के आरंभ में हिंदी सेवा के पास अपने हिंदी भाषी पत्रकारों का लंबा चौड़ा नैटवर्क नहीं था हालाँकि इस दिशा में काम शुरू हो चुका था. हमारी क़िस्मत अच्छी थी कि बीबीसी के जसविंदर सिंह उस रात हैदराबाद में थे. bbc के भारत में ब्यूरो प्रमुख मार्क टली और संवाददाता सैम मिलर दिल्ली में थे.

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