जज लोया मौत मामले की नहीं होगी SIT जांच, सुप्रीम कोर्ट ने याचिका कर्ताओं को लताड़ा..

supreme court dismiss cbi judge bh loyas death: सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ केस की सुनवाई करने वाली CBI की विशेष अदालत के जज रहे B H लोया की कथित रहस्यमयी मौत की स्वतंत्र जांच कराने की मांग से जुड़ी सभी याचिकाओं को उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार (19 अप्रैल) को खारिज कर दिया. इन याचिकाओं में SIT जांच की मांग की गई थी.

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जजों की विश्‍वसनीयता पर सवाल

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Chief Justice दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘न्‍यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश हो रही है. जजों की विश्‍वसनीयता पर सवाल उठाना अवमानना है. जनहित याचिका का मजाक बनाया गया है.’ court ने कहा, ‘जज लोया की सामान्‍य मृत्‍यु हुई, इसमें कोई शक नहीं. लिहाजा इस मामले की SIT जांच नहीं कराई जाएगी. करोबारी या राजनीतिक झगड़े कोर्ट के बाहर निपटाएं. PIL की आड़ में कोर्ट का वक्‍त बर्बाद न करें.’

Supreme Court ने अपने फैसले में कहा कि जज लोया ले साथ आखिरी वक्त तक रहे जज के बयान पर शक करने का कोई आधार नहीं है. साथ रहे जजों ने जज लोया की मौत को natural बताया था. court ने कहा कि जजों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना अवमानना की तरह है. इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की मंशा पर भी सवाल खड़े किए. शीर्ष न्यायालय ने कहा, ‘याचिकाकर्ता जांच की बात कह रहे है, पर ये स्वतंत्र न्यायपालिका पर हमला है.’

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कैसे हुई लोया की मृत्यु

लोया की मौत एक दिसंबर 2014 को कथित तौर पर दिल का दौरा पड़ने से उस वक्त हुई थी जब वह अपने एक सहकर्मी की बेटी की शादी में शिरकत के लिए नागपुर गए थे. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर एवं DY Chandrachud की पीठ ने 16 मार्च को इन अर्जियों पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

Supreme ने याचिकाओं को खारिज करते हुए सख्त लहजे में कहा कि कारोबारी और राजनीतिक दुश्मनी कोर्ट के बाहर निपटाएं. कोर्ट ने जनहित याचिका (PIL) के दुरुपयोग पर भी निराशा जाहिर की. तीन जजों की पीठ ने कहा, ‘PIL का मजाक बनाया गया. जनहित याचिका को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है.’

की गई सारी अर्जिया पेस

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महाराष्ट्र सरकार ने शीर्ष न्यायालय में दलील दी थी कि लोया की मौत की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली सारी अर्जियां प्रेरित हैं और उनका मकसद कानून का शासन बरकरार रखने की दुहाई देकर ‘‘एक व्यक्ति’’ को निशाना बनाना है. राज्य सरकार ने लोया मामले में कुछ वकीलों की ओर से शीर्ष न्यायालय के न्यायाधीशों के प्रति आक्रामक रवैया अपनाने और इस मामले से जुड़े आरोपों पर बरसते हुए कहा था कि न्यायपालिका एवं न्यायिक अधिकारियों को ऐसे व्यवहार से बचाने की जरूरत है.

पिछले साल नवंबर में उठा था मामला

इस बीच, मामले की स्वतंत्र जांच कराने की मांग करने वालों ने घटनाक्रम का हवाला देकर यह बताने की कोशिश की थी कि लोया की मौत में किसी साजिश से इनकार करने के लिए निष्पक्ष जांच की जरूरत है. लोया की मौत का मामला पिछले साल नवंबर में उस वक्त सामने आया था जब उनकी बहन के हवाले से media में आई खबरों ने उनकी मौत की परिस्थितियों को रहस्यों में घेरे में ला दिया था. लेकिन लोया के बेटे ने 14 जनवरी को मुंबई में press conference करके दावा किया था कि उसके पिता की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई.

गुजरात से मुंबई स्थानांतरित किया गया था सोहराबुद्दीन मुठभेड़ केस

सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में BJP अध्यक्ष अमित शाह, राजस्थान के गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया, राजस्थान के कारोबारी विमल पटनी, गुजरात के पूर्व पुलिस प्रमुख पी सी पांडे, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक गीता जौहरी और गुजरात के पुलिस अधिकारी अभय चूड़ास्मा एवं एन के अमीन को पहले ही आरोप – मुक्त किया जा चुका है. पुलिसकर्मियों सहित कई आरोपियों पर अभी सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उनके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति के कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में मुकदमा चल रहा है. इस मामले की जांच बाद में CBI को भेज दी गई थी और मुकदमे की सुनवाई गुजरात से मुंबई स्थानांतरित कर दिया गया था.

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