दलित और ब्राह्मण हुए एक, पीएम मोदी की विकास की राजनीति के बाद अब सिर्फ ‘हिंदू वोटर’

PM Modi’s politics of development: 2022 में होने वाले उत्तर प्रदेश (UP) विधानसभा चुनाव की तैयारी जोरों सूरत से हो रही है. सारी पार्टी अपनी रणनीति के तहत चुनावी बिगुल फूंकने को तैयार हैं. राज्य की क्षेत्रीय पार्टियां जातिवाद की राजनीति के सहारे अपना वोट बैंक साधने में लगी हुई है.

पर उत्तर प्रदेश में आखिर जातिवाद की राजनीति क्या है? जातीय संगठनों की उचित अनुचित मांगों का समर्थन उन्हें अपना वोट बैंक बनाने का प्रयास करना, जिससे जातियों में आपसी वैमनस्य पैदा हुआ हो, यही तो है जातिवाद की राजनीति. इस प्रकार वोट की राजनीति ने न केवल जातीय भावनाओं को भड़काने का प्रयास किया है, बल्कि आपसी जातीय तनाव भी पैदा किया है.

आज भारत की आजादी के 75 साल हो चुके हैं पर इस 75 साल के बाद भी उत्तर प्रदेश और बिहार की जमीनी स्तरीय राजनीति में जातिवाद सबसे बड़ा मुद्दा है समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी,सुहेलदेव समाज पार्टी जैसे कई अन्य पार्टियों का वजूद ही अपने विशेष जाति के वोट पर निर्भर है. अगर हम बात करें समाजवादी पार्टी (SP) की तो उनका मुख्य वोट बेस है यादव वोट बैंक, वैसे ही बहुजन समाज पार्टी पूरी तरह से दलित वोट बैंक पर निर्भर है.

जब साल 2014 में प्रधानमंत्री मोदी (Modi) ने देश की कमान संभाली थी तो इसका सीधा असर साल 2017 की उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजों में देखने को मिला. राज्य की जनता ने जाति और धर्म के ऊपर विकास को माना, और इसका नतीजा यह हुआ कि भारतीय जनता पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ राज्य में सरकार बनाने में कामयाब रही.

भाजपा ने 2017 उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के मूल वोट बैंक को हिंदू और विकास के मुद्दे पर आकर्षित कर लिया था. रिपोर्ट के अनुसार 2017 विधानसभा चुनाव 18% यादवों ने भारतीय जनता पार्टी को चुनाव था. वही महज 18% यादव वोट समाजवादी पार्टी को हार की खाई में धकेलने के लिए पर्याप्त थे.

आपको बता दें कि समाजवादी सरकार के 25 में से 15 मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा था. इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी को अपने ही गढ़ में भारी शिकस्त मिली थी. यादवों के गढ़ एटा में 4 में से 4 विधानसभा सीटों पर समाजवादी पार्टी की हार हुई थी. ऐसे ही फ़िरोज़ाबाद में 5 में से 4, बदायूं में 6 में से 5 सीट, और कन्नौज में 2 में से 3 सीटों पर समाजवादी पार्टी हार गई थी.

यह नतीजे इस बात के गवाह हैं कि साल 2017 में यादवों ने जातिवाद की राजनीति को पीछे छोड़कर हिंदू और विकास की रात को अपनाया था.

इन आंकड़ों से साबित होते हैं कि उत्तर प्रदेश में जातिवाद की राजनीति से परे अब विकास की राजनीति हो रही है. साथ ही साथ अब वर्तमान परिस्थितियों को देखा तो यह कहना सही होगा कि साल 2022 में विधानसभा चुनाव में राज्य की जनता जातिवाद की राजनीति को त्याग कर विकास की रणनीति को अपना सकती हैं.

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